गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

ब्रिटेन में हिंदू रीति से अंतिम संस्कार को मिली मंजूरी

ब्रिटेन में रहने वाले हिंदू भी अब अपने रीति-रिवाजों के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार कर सकते हैं। इस संबंध में भारतीय मूल के देवेंदर घई द्वारा क़ानूनी लड़ाई में महत्वपूर्ण विजय हासिल करने के बाद ऐसा संभव हो सका है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, 71 वर्षीय देवेंदर घई ने वर्ष 2006 में न्यू कासल सिटी काउंसिल के उस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें हिंदू धर्म की आस्थाओं के अनुसार अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी गई थी। ब्रिटेन उच्च न्यायालय ने भी इसी फ़ैसले को बरक़रार रखा था, जिसे बुधवार को कोर्ट ऑफ अपील ने उलट दिया है।

न्यू कासल सिटी काउंसिल का कहना था कि शवदाह गृह के अलावा किसी भी स्थान पर शव को जलाना ब्रिटेन के “अंतिम संस्कार अधिनियम-1902” के अनुसार वर्जित है। विधि मंत्रालय ने भी काउंसिल के इसी फ़ैसले का समर्थन करते हुए देवेंदर घई की अपील का विरोध किया था।

इन्हीं कारणों से भारतीय मूल के लोग अब तक अपने मृत परिजनों के शवों को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए भारत लाते रहे हैं।

गौरतलब है कि ब्रिटेन में अंतिम संस्कार पर यह विवाद दिसंबर 2005 में पश्चिमी लंदन की नहर में मिली एक लावारिश लाश से शुरू हुआ। यह एक प्रवासी भारतीय का शव था। तब घई ने राजपाल मेहता नामक इस व्यक्ति के परिवार वालों को खोज शव का हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया। खुले में चिता जलने के बाद से ही कानूनी दांवपेंच शुरू हो गए।

ब्रिटेन की कोर्ट ऑफ अपील ने अपने फैसले में कहा है, “यदि घई तैयार हैं कि चिता दीवारों और छत के नीचे जलाई जाएगी तो उनका यह अंतिम संस्कार वैध माना जाएगा।”

अदालत के इस फैसले के बाद घई ने कहा, “इस निर्णय ने एक बूढ़े इंसान के सपनों में नई जान फूंक दी है। मैं हमेशा से यह कहना चाहता था कि मेरा इरादा कानून को स्पष्ट करना था, न कि उसका उल्लंघन करना।"

उन्होंने कहा, “मुझे अफसोस केवल इतना है कि 2006 से अब तक मुकदमेबाजी में करदाताओं का काफी पैसा बर्बाद हो चुका है। मैंने कभी यह नहीं कहा कि अंतिम संस्कार खुले में हो, मैंने हमेशा कहा कि इसके लिए कोई इमारत वगैरह ठीक रहेगी।”

हालांकि, ब्रिटेन के विधि सचिव खुली हवा में चिता जलाने की मंजूरी मांगने का विरोध कर रहे थे। उनका तर्क था कि खुले में शवों को जलाने से वातावरण दूषित हो सकता है।

इस विषय पर पर्यावरणवादियों का भी यही सवाल रहा है कि हिंदू रीति के अनुसार शवों को जलाकर जब अस्थियाँ जल में प्रवाहित की जाती हैं तो उससे प्रदूषण फैलता है।

इन बिंदुओं पर घई की तरफ से मामले की पैरवी कर रहे बैरिस्टर सतविंदर जस का कहना था कि इन चिंताओं का कोई ठोस आधार साबित नहीं हो सका है।

बैरिस्टर सतविंदर जस ने कहा कि इस फ़ैसले से हिंदुओं, सिखों, बौद्ध, जैन और वैदिक रीति-रिवाज़ मानने वाले सभी समुदायों को फ़ायदा होगा। वे मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार अपनी आस्थाओं के अनुसार कर सकेंगे।

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