रविवार, 16 अक्तूबर 2011

'ज्यादा स्वायत्तता' का अर्थ है, कल की स्वतंत्रता

पवन कुमार अरविंद

कश्मीर मसले पर वार्ताकार पैनल ने अपनी रिपोर्ट भले ही केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंप दी है, लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल सर्वदलीय बैठक के बाद ही होगा। क्योंकि सरकार किसी भी विवाद का जिम्मा अकेले अपने ऊपर क्यों लेना चाहेगी? हालांकि, पिछले वर्ष 20 सितम्बर को हालात का जायजा लेने दो दिवसीय दौरे पर जम्मू-कश्मीर गये 39 सदस्यीय सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल की सिफारिश पर ही वार्ताकार पैनल के गठन का फैसला किया गया था। इस कारण भी इसकी संभावना बनती है कि केंद्र सरकार इसके लिए सर्वदलीय बैठक बुलाएगी। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम कर रहे थे, जिसमें संसद के दोनों सदनों- लोकसभा व राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष क्रमश: सुषमा स्वराज व अरुण जेटली, लोजपा प्रमुख रामबिलास पासवान सहित अन्य पार्टियों के नेता शामिल थे।

केंद्र ने 12 अक्टूबर 2010 को वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर के नेतृत्व में तीन सदस्यीय वार्ताकार पैनल का गठन किया था। इसके दो अन्य सदस्य शिक्षाविद् प्रो. राधा कुमार और पूर्व सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी थे। गृह मंत्रालय ने वार्ताकारों को कश्मीर समस्या का विस्तृत अध्ययन कर इसके समाधान का रास्ता सुझाने के लिए कहा था। पैनल ने अपने एक वर्षीय कार्यकाल के अंतिम दिन यानी 12 अक्टूबर 2011 को अपनी रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी।

रिपोर्ट सौंपने के बाद वार्ताकारों में से एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि राज्य को और अधिक स्वायत्तता देने की सिफारिश की गयी है, पर यह 1953 के पहले जैसी नहीं होगी। हालांकि, तीनों वार्ताकारों- पडगांवकर, अंसारी और राधा कुमार ने रिपोर्ट के तथ्यों के बारे में अधिकृत रूप से कुछ भी बताने से इन्कार किया।

इस संदर्भ में जम्मू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हरिओम का कहना है कि अगर रिपोर्ट स्वायत्तता की पैरवी करती है तो इसके नतीजे भयानक होंगे। जम्मू, लद्दाख के लिए अलग रीजनल काउंसिल बने तो यह ठीक रहेगा, लेकिन इसका स्वरूप क्या होगा, कहा नहीं जा सकता है।

हालांकि, कश्मीर समस्या के समाधान के निमित्त विगत दस वर्षों में केंद्र का यह कोई प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने श्रीनगर में 24 व 25 मई 2006 को आयोजित राउंड टेबिल कान्फ्रेंस में कश्मीर समस्या पर गहन विचार विमर्श के लिए पांच कार्यदल गठित किये थे। ‘बेहतर प्रशासन’ पर गठित कार्यदल के प्रमुख एन.सी. सक्सेना, ‘आर्थिक विकास’ पर सी. रंगाराजन, ‘नियंत्रण रेखा के आर-पार सम्बंध विकसित करने’ एम.के. रसगोत्रा तथा ‘विश्वसनीयता बढ़ाने के प्रश्न’ पर मोहम्मद हामिद अंसारी (अब उप-राष्ट्रपति) के नेतृत्व वाले कार्यदलों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट 24 अप्रैल 2007 को केंद्र को सौंपी थी।

पांचवे कार्यदल के प्रमुख थे- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सगीर अहमद। न्यायमूर्ति अहमद ने अपनी रिपोर्ट में स्वायत्तता को अलगाववादी मांग नहीं माना और लिखा कि स्वायत्तता को बहाल करने के सम्बंध में प्रधानमंत्री स्वयं अपना तरीका व उपाय तय करें। उन्होंने अनुच्छेद 370 के अस्थाई दर्जे पर अंतिम फैसले की भी पैरवी की थी और कहा कि केन्द्र राज्य के बेहतर सम्बन्धों के लिये अनुच्छेद 370 पर अंतिम फैसला जरूरी है।

10 जनवरी 2010 को जम्मू में हुई बैठक में राज्य विधानसभा के सदस्यों- हर्षदेव, डॉ. अजय, अश्विनी कुमार, शेख अब्दुल रहमान और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने रिपोर्ट को फर्जी और नेशनल कांफ्रेंस का एजेण्डा करार दिया था। इस पर जेटली ने सवाल उठाते हुए कहा था कि सितम्बर 2006 के बाद कार्यदल की कोई बैठक नहीं हुई तो यह रिपोर्ट कहां से आ गयी?

दरअसल, जेटली का तर्क उचित ही था क्योंकि न्यायमूर्ति सगीर लम्बे समय से बीमार थे और कार्यदल की बैठकों में शामिल नहीं हो पाये थे। इस रिपोर्ट में नेशनल कांफ्रेंस की मांगों की शब्दावली है। उस समय यह चर्चा जोरों पर थी कि क्या इस रिपोर्ट को नेशनल कान्फ्रेंस के राजनैतिक इस्तेमाल के लिए ही कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने तैयार करवाया है?

जम्मू-कश्मीर मामले के अध्ययन के लिए पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री राम जेठमालानी की समिति भी कार्य कर चुकी है। राज्य के वर्तमान राज्यपाल एन.एन. वोहरा भी कश्मीर पर केंद्र के वार्ताकार रह चुके हैं। सभी रिपोर्टों में कश्मीर समस्या की जटिलता की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। वैसे मौजूदा वार्ताकारों की रिपोर्ट में क्या है, इसकी जानकारी इसके सार्वजनिक होने के बाद ही पता चलेगी, लेकिन चर्चा इस बात की भी है कि वार्ताकारों की रिपोर्ट विगत वर्षों में आयी न्यायमूर्ति सगीर सहित विभिन्न समितियों की रिपोर्टों से भिन्न नहीं होगी। यानी आज की ‘ज्यादा स्वायत्तता’ का मतलब है, कल की स्वतंत्रता।

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