Que. तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस का डच भाषा में अनुवाद करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली ?
Ans. श्रीरामचरितमानस के अनुवाद की प्रेरणा मुझे वैरागी अखाड़ा के संत स्वामी ब्रह्मस्वरूपानंद उपाख्य स्वामी ब्रह्मदेव से मिली। उन्होंने ही मुझे इस कार्य के लिए प्रेरित किया और समय-समय पर आवश्यक सुझाव दिए, जिसके कारण आज ये संभव हो पाया है। स्वामी जी भारतीय संत हैं। उनका मुख्य आश्रम त्रिनिडाड में है। इसके अतिरिक्त अमेरिका, नार्वे, सूरीनाम, फ्लोरिडा; आदि देशों में भी आश्रम है। वे पिछले कई वर्षों से विदेशों में रामकथा व भागवतकथा के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रचार-प्रसार के कार्य में सक्रिय हैं।
Que. अनुवाद के दौरान आपको भाषा की क्या-क्या दिक्कतें आईं ?
Ans. मैं अपने जीवन के 18-19 वर्षों तक हिंदी और डच भाषा नहीं जानता था। हिंदी में केवल हाँ और ना की ही जानकारी थी। डच भाषा को मैं राक्षसी भाषा मानता था। लेकिन यह जानकारी जब स्वामी ब्रह्मस्वरूपानंद जी को हुई; तो उन्होंने मुझे कहा कि शर्म करो, तुम भारतीय मूल के हो; फिर भी हिंदी नहीं जानते। स्वामी जी के इस कथन के बाद मैंने हिंदी के साथ डच भाषा भी सीखी। इसके बाद मैंने डच और हिंदी भाषा की एक किताब लिखी, ताकि डच लोग भी हिंदी सीख सकें।
Que. डच भाषा की लिपि क्या है ?
Ans. रोमन।
Que. श्रीरामचरितमानस की विषय-वस्तु को जानने-समझने में यदि किसी और माध्यम या व्यक्ति ने आपकी मदद की हो, उसके बारे में बताइए ?
Ans. श्रीरामचरितमानस और उसके प्रमुख पात्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के व्यक्तित्व को जानने-समझने में डीडी-1 चैनल पर प्रसारित होने वाले रामानंद सागर की प्रसिद्ध हिंदी धारावाहिक रामायण ने मुख्य भूमिका अदा की। रामानंद सागर के धारावाहिक को मैंने अपना गुरू माना। इसके पहले मैंने कभी रामायण नहीं पढ़ी थी। लेकिन धारावाहिक देखने के बाद मैं रामायण पढ़ने के लिए उत्सुक हुआ। जितनी बार पढ़ता, उतनी बार कुछ न कुछ नयी जानकारियां मिलीं। जिससे अनुवाद में काफी सहूलियत हुई।
Que. अनुवाद का कार्य आपने कितने दिनों में पूरा किया ?
Ans. अनुवाद करने में कुल 20 महीने का समय लगा। मैं प्रतिदिन 18 घंटे कार्य करता था और शेष 6 घंटे सोने और नियमित दिनचर्या में लगाता था। इस दौरान मेरी पत्नी श्रीमती नसीम कृष्ण का विशेष सहयोग मिला। बिना उनके सहयोग के यह कार्य संभव नहीं था। वे कॉफी बना-बनाकर मुझे देती रहती थीं और मैं केंद्रित होकर अनुवाद के कार्य में लगा रहता था। अनुवाद के साथ ही पुस्तक के लिए लेआउट, तुलसीदास जी की पेंटिग्स, बजरंगबली की पेंटिग्स भी बनाया।
Que. क्या आप श्रीरामचरितमानस के बाद भी किसी अन्य ग्रंथ या साहित्य का डच भाषा में अनुवाद करने की सोच रहे हैं ?
Ans. इसके बाद मैं तुलसीदास रचित एक अन्य साहित्य “वैराग्य संदीपनी” का डच भाषा में अनुवाद करुंगा। मेरा प्रयास होगा कि यह कार्य भी शीघ्र सम्पन्न हो जाए।
Que. इसके अतिरिक्त आपकी और क्या योजनाएं हैं ?
Ans. मेरी योजना भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़ी “फ्राम हे राम टू श्रीराम” नामक एक नाटक पर कार्य करने की है। यह तीन भागों में होगा। जिसमें इतिहास, रामचिरतमानस और महात्मा गांधी से जुड़ी विषय-वस्तु का समावेश होगा।
Que. यह नाटक लिखने का आपका क्या उद्देश्य है ?
Ans. इस नाटक के माध्यम से मैं यह बताना चाहता हूं कि जब 150 से 170 वर्षों पूर्व हमारे पूर्वज गिरमिटिया मजदूर के रूप में सूरीनाम, हॉलैंड, त्रिनिडाड आदि देशों में आए तो क्या कारण था कि श्रीरामचरितमानस को भी साथ लाये। महात्मा गांधी ने क्यों मरते वक्त हे राम का उच्चारण किया था, आदि। इन सब बातों से जुड़े प्रश्नों का विस्तृत ढंग से वर्णन करूंगा। ताकि लोग राम के महत्व को आसानी से समझ सकें।
Que. इसके अलावा आपकी कोई और उपलब्धि हो, तो बताइए ?
Ans. श्रीरामचरितमानस का अनुवाद कार्य शुरू करने से पूर्व मैंने रामलीला का आयोजन किया था, जिसमें सभी पात्र हिंदी में बोलते थे। मैं समझता हूं कि पात्रों का हिंदी में वाद-संवाद करना मेरी बड़ी उपलब्धि है। इसके अतिरिक्त हनुमान चालीसा का डच में अनुवाद करूंगा।
Que. अपने बारे में कुछ बताइए ?
Ans. मेरी पैदाइश सूरीनाम में हुई। शिक्षा-दीक्षा सूरीनाम और हॉलैंड में हुई। मैं हॉलैंड के माडर्न स्कूल में अध्यापक हूं। मेरे पूर्वज भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर के रहने वाले और मेरी पत्नी के पूर्वज कलकत्ता के निवासी हैं। वे लोग गिरमिटिया मजदूर के रूप में करीब 150 से 170 वर्षों पूर्व सूरीनाम और त्रिनिडाड गए थे और वहीं के होकर रह गए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें