सोमवार, 10 मई 2010

हाय रे शिबू सोरेन ----!

सत्ता के अपने ही चाल में स्वयं चित होने के बाद शिबू सोरेने को हर प्रकार से माफी मांगनी पड़ी। उन्होंने भाजपा नेतृत्व से लिखित और मौखिक के साथ, इस दुनिया में माफी मांगने के और भी जितने तरीके होते हैं, उन-उन तरीकों का बखूबी इस्तेमाल किया, लेकिने बात नहीं बनी। यहां तक कि उनका बेटा हेमंत सोरेने भी खुद चाहता है कि वह इस्तीफा दे दें और मुख्यमंत्री पद के लिए उसका रास्ता खाली कर दें।

अपने माफीनामे को और बल प्रदान करने के लिए उनको यहां तक कहना पड़ा कि लोकसभा में मतदान के समय उनकी तबियत बिगड़ गई थी, इस कारण वह समझ नहीं पाए कि उनका वोट कहां जा रहा है।

दरअसल, लोकसभा में भाजपा द्वारा लाए गए कटौती प्रस्ताव के दौरान शिबू सोरेन ने सरकार के पक्ष में वोट किया था। गठबंधन धर्म के कारण नियमतः उनको भाजपा के पक्ष में वोट करना चाहिए था।

भाजपा ने भी आनन-फानन में संसदीय बोर्ड की बैठक कर सोरेन सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। जिसके बाद उनकी कूटनीतिक तबियत और बिगड़ गई।

दरअसल, बात यह नहीं है कि सोरेन ने गठबंधन धर्म का पालन किया या नहीं किया। बात यह भी नहीं है कि उन्होंने भाजपा नेतृत्व को मेन मौके पर धोखा दे दिया। भई उनका वोट है, वो किसी को भी दें, किसी और को क्या ऐतराज हो सकता है।

बल्कि, मुख्य मुद्दा तो यह है कि उन्होंने अपने माफीनामे में जो जिक्र किया था, वह हास्यास्पद ही है। उन्होंने कहा था, उनकी तबितय बिगड़ गई थी और वह समझ नहीं पाए कि उनका वोट कहां जा रहा है।

उनकी ऐसी बातें एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में और वह भी लिखित रूप में, उचित नहीं कहा जा सकता। जब उनकी एक छोटी स्थिति में ही तबियत बिगड़ जा रही है तो प्रदेश के बड़े-बड़े निर्णयों के समय क्या हाल होता होगा, यह सोचने वाली बात है।

हालांकि, एक निरक्षर आदमी भी यह समझने की योग्यता रखता है कि सोरेन की तबियत का शिगूफा महज एक झूठ था, इसके सिवाय और कुछ भी नहीं था। क्योंकि वह चाल तो कुछ और चले थे लेकिन कांग्रेस के धोखा देने के बाद स्वयं ही फंस गए। जिसके बाद पश्चाताप ही पश्चाताप है।

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