गुरुवार, 27 मई 2010

नेपाल के लिए घातक हैं माओवादी

नेपाल में माओवादियों की धैर्यहीन सत्ताभिमुखी राजनीति देश का कबाड़ा करके रख देगी। राजतंत्र के दौर में माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए बड़ी-बड़ी बातें की थीं और कसमें खाई थी। लोकतंत्र की स्थापना के नाम पर उन्होंने करीब 10 वर्ष तक देश को माओवाद के खूनी खेल में उलझाए रखा।

राजतंत्र की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री बनते ही उनकी महत्वाकांक्षा ने स्वयं के ही दावों की हवा निकाल दी। और तो और सत्ता में रहते हुए सारी लोकतांत्रिक बातें एवं विचार उन्होंने ताक पर रख दिया था। हालांकि, उनसे ऐसी कभी अपेक्षा भी नहीं थी।

उसी महत्वाकांक्षा के कारण माओवादी देश के दूसरे अंतरिम प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। हालांकि, माधव ने इस्तीफा देने से इन्कार कर दिया है, जो उचित भी है।

उनके इस इन्कार के बाद नेपाल में एक अप्रत्याशित संवैधानिक संकट पैदा होने की आशंका उत्पन्न हो गई है। देश में 28 मई की रात राष्ट्रपति शासन और आपात स्थिति की घोषणा होने की पूर्ण संभावना है।

क्योंकि, राजतंत्र की समाप्ति के बाद जनता के प्रत्यक्ष मत से निर्वाचित 601 सदस्यीय संविधान सभा अब तक संविधान लेखन का कार्य पूर्ण करने में नाकाम रही है। इस नाकामी की प्रमुख वजह माओवादी ही हैं। क्योंकि संविधान सभा में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) के सदस्यों की संख्या 229 है।

संविधान से संबंधित किसी भी निर्णय के लिए कम से कम दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जो बिना माओवादियों के संभव नहीं है।

यदि संविधान लेखन का कार्य पूर्ण भी हो जाए तो भी बिना माओवादियों के समर्थन के नए संविधान को संविधान सभा में पारित करा लेना संभव नहीं होगा।

हालांकि, अब संविधान की बात ही नहीं है। अब तो उसके कार्यकाल पर ही खतरे की तलवार लटक रही है। क्योंकि संविधान सभा का कार्यकाल 28 मई को समाप्त हो रहा है। और कार्यकाल का विस्तार भी बिना माओवादियों के संभव नहीं है।

प्रधानमंत्री आपातकाल की घोषणा करके संकट को केवल छह महीने के लिए टाल सकते हैं, हालांकि नेपाल में केवल गृहयुद्ध या प्राकृतिक आपदा के समय ही आपातकाल लागू किया जा सकता है। इस संकट से बाहर निकलने का एकमात्र उपाय संविधान में संशोधन कर संविधान निर्माण की समय सीमा बढ़ाना है।

परंतु, इसके लिए सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है, लेकिन माओवादियों के विरोध के जारी रहने तक यह असंभव है

माओवादियों और सत्तारूढ़ दल के बीच झगड़े की असली वजह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लड़ाके हैं। ये वही लड़ाके हैं, जिन्होंने प्रचंड द्वारा राजशाही के खिलाफ छेड़े गए संघर्ष में देशभर में जमकर रक्तपात किया था। इस समय इनकी संख्या करीब 20 हजार है।

माओवादियों की मांग है कि इन लड़ाकों को नेपाल की राष्ट्रीय सेना में शामिल किया जाए। इन लड़ाकों को सेना में शामिल कराने के पीछे प्रचंड की मंशा देश की सत्ता पर एकाधिकार करना है। इसलिए वह सोची-समझी रणनीति के तहत इस अभियान में लगे हुए हैं।

जबकि, सरकार उनके इस मांग का विरोध कर रही है। और किसी भी कीमत पर उनकी मांगों को मानने को तैयार नहीं है।

सर्वदलीय सरकार के गठन का रास्ता साफ करने के लिए पद छोड़ने के माओवादी पार्टी और अंतरराष्ट्रीय दबाव के सामने झुकने से इन्कार करने वाले प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति रामबरन यादव से एक लंबी मुलाकात की है। देश के संवैधानिक प्रमुख यादव शुक्रवार रात से वास्तव में नेपाल के कार्यकारी बन जाएंगे, ऐसा लग रहा है।

माधव नेपाल ने राष्ट्रपति से कहा कि वह माओवादियों के दबाव के सामने नहीं झुकेंगे। माओवादियों की मांग है कि केवल प्रधानमंत्री के इस्तीफा देने के बाद ही वह सरकार को जीवनदान देंगे।

हालांकि, नेपाल का भविष्य क्या होगा, यह कहना कठिन है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि माओवादियों के हाथों में नेपाल सुरक्षित नहीं रहेगा।

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